गरियाबंद। सोशल मीडिया बिछड़ चुके परिजनों से एक दूसरे को मिलाने में कैसे मददगार है, इसकी एक मिसाल और देखने को मिली है। दिमागी रूप से कमजोर महिला लापता हो गई थी, लेकिन सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए एक वीडियो से ऐसा चमत्कार हो गया। जिसके बाद 8 साल बाद एक बेटे को उसकी बिछड़ी मां मिल गई। बेटा 7 सालों तक मां के लौटने का इंतजार करता रहा, उसे जहां तहां ढूंढता रहा। फिर समाज की रस्मों रिवाज और दबाव के चलते पिछले साल श्राद्ध भी कर दिया था। इस बीच, वायरल वीडियो की मदद से वह अपनी मां को ओडिशा के एक गांव से अपने घर ले आया है।
गोहेकला निवासी बलभद्र नागेश की मां मरुवा बाई मानसिक रूप से कमजोर हैं। वह अक्सर घर से निकल जाती थीं, फिर एक-दो दिन में लौट भी आतीं। साल 2013 में भी कुछ ऐसा ही हुआ लेकिन वह घर वापस आई ही नही। तब बलभद्र ने परिवार के साथ मिलकर मां को अलग-अलग जिलों में तलाश किया, लेकिन उनका कुछ पता ही नहीं चला। लोग अब मान चुके थे कि मरुवा बाई अब जीवित नहीं हैं, पर बलभद्र को यकीन था कि मां एक दिन जरूर लौटेंगी। जिसके चलते ही इतना समय बीत जाने कारण भी उन्होंने मां का श्राद्ध नहीं करवाया था।
वॉट्सऐप ग्रुप पर आए एक वीडियो ने ओडिशा तक पहुंचा दिया
बलभद्र नागेश ने बताया कि वॉट्सऐप ग्रुप पर एक वीडियो गांव के ही एक व्यक्ति को मिला था। उसने छोटे भाई को भेजा। वीडियो में दिख रही महिला के मां होने की संभावना पर उसने बलभद्र को वीडियो फॉरवर्ड किया। जानकारी जुटाई तो पता चला कि वीडियो ओडिशा में बलांगीर जिले के किसी गांव का है। इस पर परिवार उसे लेने पहुंच गया। वहां दो दिन की तलाश के बाद आखिरकार बलभद्र का उसकी मां मरुवा बाई मिल गई। उसे लेकर गुरुवार को गांव लौटे तो परिवार में खुशियां छा गईं।
जीते जी मां का श्राद्ध करने का अफ़सोस
बलभद्र को जीते जी अपनी मां का श्राद्ध कर्म करने का बहुत मलाल है। उन्हें दुख भी है कि समाज के कहने पर ऐसा किया। बलभद्र बताते हैं कि उनके समाज में किशोरावस्था में कदम रखने पर बेटी की महुआ के पेड़ से प्रतीकात्मक शादी कराई जाती है। मान्यता है कि इससे असल वैवाहिक जीवन सुखमय रहेगा। उसकी 10 साल की बेटी का भी बालिका व्रत विवाह की परम्परा होनी थी। इसे स्थानीय भाषा में कोणाबेरा कहा जाता है। इस परंपरा को निभाने के लिए समाज ने मां के क्रिया कर्म की रस्म का दबाव बनाया गया था।
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