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सिगरेट पीने वालों से रहे दूर, धुएं से भी हो सकता है कैंसर! जानें क्या होती है सेकंड हैंड स्मोकिंग

Passive Smoking: तंबाकू स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और इससे कर्क (कैंसर) रोग हो सकता है। ये लाइन आपको हर सिगरेट के डिब्बे पर देखने को मिल जाएगी। लेकिन इसके बाद भी लोगों का सिगरेट पीना कम नहीं होता है। अब तक आपने सुना होगा कि जो लोग सिगरेट पीते हैं, सिर्फ उन्हें ही कैंसर होता है…लेकिन क्या कभी आपने ये सुना है कि सिगरेट पीने वालों के साथ रहने वाले को भी कैंसर हो गया हो। ऐसा ही एक मामला चर्चा में था हैदराबाद की नलिनी का। जिनको उनके पति के सिगरेट की लत की वजह से कैंसर हुआ था। चलिए आपको बताते हैं कि सामने वाले के सिगरेट पीने से आप मौत के कितने करीब पहुंच जाते हैं।

 

क्या होती है सेकंड-हैंड स्मोकिंग

सेकंड-हैंड स्मोकिंग का कनेक्शन है सिगरेट, सिगार या हुक्के से निकलने वाले धुएं से. अगर आप इस धुएं के संपर्क में आते हैं तो समझ लीजिए आप सेकंड हैंड स्मोकिंग का शिकार हैं। बताया जाता है कि ये सेकंड हैंड स्मोकिंग बच्चों और बुजुर्गों पर काफी खराब असर करती है। कई मामलों में यह घातक भी साबित हो सकती है।

 

कितने लोग ऐसे अपनी जान गंवाते हैं?

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल तंबाकू के सेवन से लगभग 80 लाख लोगों की कैंसर से मौत होती है। इसमें 12 लाख ऐसे लोग होते हैं जिनकी मौत अप्रत्यक्ष रूप से तंबाकू का सेवन करने से होती है। यानी ये लोग सिर्फ इसलिए अपनी जाव गंवा देते हैं, क्योंकि ये सिगरेट पीने वालों के साथ रहते हैं। वहीं अगर भारत की बात करें तो WHO की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां हर साल तंबाकू के सेवन से मरने वालों की संख्या 13.5 लाख के पार है। यानी अब आपको समझना होगा कि आप सिगरेट भले ही ना पीते हों, लेकिन अगर आपके आसपास भी कोई सिगरेट पी रहा है तो वो आपको मौत के नजदीक ले जा रहा है।

 

लोग तंबाकू से दूरी बना रहे हैं

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में लोग अब तंबाकू से होने वाले खतरे के प्रति जागरुक हो रहे हैं। यही वजह है कि अब तंबाकू का सेवन करने वालों की तादाद में पहले के मुकाबले कमी देखने को मिली है। साल 2000 से 2020 की तुलना करें तो तंबाकू का सेवन करने वालों की तादाद में काफी कमी देखने को मिलती है। जैसे साल 2000 में जहां 15 साल की उम्र से ज्यादा के करीब 32 फीसदी लोग तंबाकू का सेवन करते थे। वहीं साल 2020 में ये संख्या घटकर 20 फीसदी हो गई।

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