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बदहाल बस्तर की कहानी, 1588 सरकारी स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक, छात्रों के भविष्य पर लाल आतंक का साया

बदहाल बस्तर की कहानी: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में अरसे से माओवाद ने अपना आतंक फैला रखा है। यहाँ के सुंदर घने जंगलों की आड़ लेकर नक्सलियों ने कई बड़े कांडों को अंजाम दिया है। यहाँ के कई इलाकों के लोगों में तो नक्सलियों ने दहशत फैलाने में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी। लेकिन अब तो छात्रों के भविष्य पर भी आतंक का कहर दिख रहा है।
बता दें कि छत्तीसगढ़ का बस्तर जिले में दो बड़ी परेशानियाँ हैं। सबसे पहली बड़ी परेशानी नक्सली हैं और दूसरी बड़ी परेशानी है यहां के स्कूलों में शिक्षकों की कमी। यहाँ के हालात ऐसे हैं कि यहां शिक्षकों से ज्यादा सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं। कोरोना महामारी से जुझने के बाद और तकरीबन डेढ़ साल के लंबे इंतजार के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने दसवीं और 12वीं क्लासों को फिर से खोलने का ऐलान कर दिया है। किंतु आज भी बस्तर क्षेत्र के आदिवासी बहुल पिछले इलाकों में शिक्षा व्यवस्था को सुधारना एक बड़ी चुनौती है। बता दें कि यह पूरा इलाका केरल राज्य से भी बहुत बड़ा है।
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1588 सरकारी स्कूलों में केवल एक ही टीचर
बस्तर इलाके के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। इस क्षेत्र के स्कूलों में टीचरों की बहुत ही ज्यादा कमी है। फिर भी शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए यहां सरकार शिक्षा दूत, अतिथि शिक्षक, शिक्षक सारथी और शिक्षक सेवकों की मदद लेने का भरसक प्रयास कर रही है। मालूम हो कि बस्तर जोन में आने वाले कुल 1588 सरकारी स्कूलों में अभी भी सिर्फ एक ही टीचर हैं। अगर हम सरकारी आंकड़ों की बात करें तो 227 स्कूलों में अब तक कोई टीचर नहीं हैं। शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे बहुत से लोगों का यह मानना है कि अगर प्रशासन के द्वारा इस दिशा में जल्द ही कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया तो छात्रों को काफी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ सकता है।
यहाँ टीचर जल्द करा लेते हैं तबादला
जानकारी के मुताबिक बस्तर क्षेत्र में जिन शिक्षकों की नियुक्ति होती है वो यहां ज्यादा लंबे समय तक काम करने के लिए इच्छुक नहीं होते और इसी कारणवश जल्दी ही अपना तबादला किसी अन्य क्षेत्र में करवा लेते हैं। बस्तर क्षेत्र के स्कूली शिक्षा के संयुक्त निदेशक भारती प्रधान ने बताया कि यहाँ के शिक्षक 3 साल तक काम करते हैं फिर ट्रांसफर ले लेते हैं जिसकी वजह से जगह खाली हो जाती है। शिक्षा दूत, अतिथि शिक्षक, शिक्षक सारथी और शिक्षक सेवक हमेशा स्कूलों में तैनात किये जाते हैं लेकिन हमेशा ही उनकी कमी बनी रहती है।
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जानकारी के लिए बता दें कि छत्तीसगढ़ के कांकेर, जगदलपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा समेत कुल 7 नक्सल प्रभावित जिलों में कुल 16500 से भी ज्यादा स्कूल हैं। और कई इलाकों के स्कूलों में तो शिक्षकों की भारी कमी है।

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