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विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के काछनगादी और जोगी बिठाई की रस्म जैसे अनूठे विधान, जानिए क्या है खास…
विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा 75 दिनों तक चलते हैं। वैसे तो इसके सारे विधान अपने आप में बहुत अनोखे और अनूठे हैं, किंतु इनमे से 2 को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। एक है काछनगादी, तो दूसरा है जोगी बिठाई की रस्म। इन दोनों रस्मों के बिना बस्तर दशहरा मनाने की अनुमति नहीं मिलती है। ये परम्पराएं सालों पुरानी हैं। इसलिए इन परम्पराओं को पूरे विधि विधान के साथ पूरा किया जाता है। 6 अक्टूबर को काछनदेवी ने बस्तर के राजा कमलचंद भंजदेव को दशहरा मनाने की अनुमति प्रदान कर दी है। वहीं, गुरुवार को जोगी बिठाई की रस्म भी पूरी की गई है। परंपरा के मुताबिक, नवरात्र के पहले दिन ही जोगी उपवास रखकर कुंड में तप करने के लिए बैठ गए हैं। वे अब सीधे विजयादशमी के दिन ही उठेंगे।
काछनगाडी बस्तर दशहरा का सबसे प्रमुख कर्मचारी। डैट है कि पनका बालिका पर काछन एक डायल करता है। बेल के कांटों के झुला में। मेरठ के राजा के राजा के परिवार के सदस्य बस्तर दशहरे के मौसम के अनुसार हैं। कांटों पर झूमते हैं बस्तर के राजा को दशहरे की महिमा. इस तरह से लागू होने के बाद, उन्हें इस तरह से लागू किया जाता है।
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यहां होती है यह रस्म
इस रस्म जगदलपुर के खंडाराम चौक के पास काछनगुडी में है। यह जानने के लिए और माता-पिता के आशीर्वाद के लिए सात की संख्या में क्या हैं। ट्विट, काछनदेवी के पेसर गणेश दास नेवा ने, बस्तर महाराजा दल देव ने काछनगुड़ी का खराबोद्धार था। नियमित रूप से गुदगुदाए गए थे। यह जानकारी दी कि, काछनदेवी को रण की देवी के नाम से भी जाना है। पंका जाति की महिला धनकुल वादन के साथ गीत भी गाती हैं। बैर के दशहरे के लिए मंगलवार को बैटर ने इस डिवाइस से इजाज़त ली।
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करना होता है इन नियमों का पालन, तभी होता है विधान पूरा
जानकारी के लिए बता दें कि काछनगादी रस्म के पहले 12 साल की अनुराधा को 7 दिन पहले से कठोर व्रत रखवाया गया था। उसे रोज शाम को विशेष पूजा में भी शामिल किया गया। कहते हैं कि इसके अनुग्रह से बस्तर दशहरा बिना किसी अड़चन के होता है। पुजारी ने बस्तर दशहरा पर्व संपन्न कराने की अनुमति देने से पहले काछन गुड़ी से देवी के रूप में विराजित अनुराधा का आह्वान किया। इसके बाद देवी ने बेल के कांटों से बने झूले की 3 बार परिक्रमा की। फिर उन्हें कांटे के झूले पर झुलाया गया। इसके पश्चात माता ने माटी पुजारी का निवेदन स्वीकार कर लिया और उन्हें फूल दिया।
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राजा की जगह जोगी रखते हैं उपवास, करते हैं तप
काछनगादी के बाद बस्तर दशहरा की दूसरी सबसे बड़ी रस्म है जोगी बिठाई जिसकी अदायगी केवल पुरुष ही करते हैं। इस परंपरा को इस बार आमाबाल गांव के रघुनाग ने निभाई है। जोगी को मांझी-चालकी व पुजारी की मौजूदगी में नए वस्त्र पहनाए गए। फिर उसे गाजे-बाजे के साथ कपड़ों के पर्दे की आड़ में सिरासार के पास स्थित मावली माता मंदिर ले जाया गया। इसके बाद वहां रखे तलवार की पूजा की गई और तलवार को जोगी को दिया गया। इस तलवार को लेकर जोगी वापस सिरासार भवन गए। पुजारी के प्रार्थना के दौरान जोगी उपवास कर संकल्प लेकर एक कुंड में बैठे। जोगी ने कहा कि, इस साल बस्तर दशहरा बिना किसी बाधा के संपन्न होगा।
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बस्तर दशहरा पर्व का महत्वपूर्ण विधान जोगी बिठाई की रस्म गुरुवार शाम सिरहासार भवन में पूर्ण की गई। यह परम्परा सालों से चली आ रही है। इस परंपरा के अनुसार, आमाबाल गांव के जोगी बने रघुनाग की इस विधान को पूरा करने के लिए मंदिर में पुजारी द्वारा दीप जलाकर मावली देवी की पूजा-अर्चना की गई। इसके पश्चात वहां रखे तलवार की पूजा की गई और उस तलवार को जोगी को दिया गया। इस तलवार को लेकर जोगी वापस सिरासार भवन में गए। जहां पुजारी के प्रार्थना के बाद जोगी 8 दिनों तक साधना का संकल्प लेकर गड्ढे में बैठ गए। जोगी ने कहा कि इस साल भी बस्तर दशहरा बिना किसी बाधा के संपन्न होगा।
जानिए क्या है जोगी बिठाई की मान्यता
डेटा से है कि जोगी के टैप डाइविज़ खुश हैं। धूप से दशहरा व्यवस्था में जोजी के दिन से लेकर विजयादशमी तक पूरी तरह से व्यवस्थित है। बता दें कि जोगी नवरात्र के दूसरे दिन की शुरुआत के साथ ही मां दंतेश्वरी के प्रथम पुजारी के रूप में एक ही जगह बैठकर कठिन व्रत रखते हैं और तप करते हैं। देवी की उपासना बस्तर को रासायनिक रंग में सुंदर रंग के होते हैं। इस तरह के स्थिति वाले जोगी को देवी के उपासना के लिए 9 दिन तक उपासना के लिए ये परिपाटी जातक दशहरे के मौसम से जुड़े होते हैं।
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