बस्तर। छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित बस्तर जिला अपने घने जंगलों, मनमोहक नदियों, हरी भरी घाटियों, घूमते पहाड़ो जैसी विशेषताओं के कारण एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है। कोटुमसर गुफा व कैलाश गुफा बस्तर में स्तिथ ऐसी पर्यावरण पर्यटन स्थल हैं जिनमे कई राज़ छिपे हुए हैं और जिनसे आज भी पर्दा उठाया जा रहा है। यह दोनों गुफाएं कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित हैं जो जगदलपुर शहर से लगभग 38-40 किलोमीटर दूर हैं। इन गुफाओं को दुनिया की सबसे लम्बी प्राकृतिक गुफाओ की सूची में दूसरे स्थान पर रखा गया है।
कुटुमसर गुफा
कुटुमसर गुफा का नाम पास में स्तिथ ‘कुटुमसर’ नामक गांव के आधार पर रखा गया हैं, जिसे पहले गोपनीय विशेषता के कारण गोपांसर गुफा कहा जाता था। यह एक चूना पत्थर की गुफा है जो कांगेर चूना पत्थर की पट्टी पर बनी है। बिलासपुर के रहने वाले प्रोफेसर शंकर तिवारी ने 1958 में इस गुफा की खोज की थी।
प्रोफेसर तिवारी ने गुफा में पाए जाने वाली अंधी मछलियों की पहचान की जिनका रंग खून की तरह लाल होता है। इसके साथ उन्होंने एक नयी जीव प्रजाति का खोज किया जिसका नाम प्रोफेसर तिवारी पर ‘कैम्पिओला शंकराई’ रखा गया।
फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद, इंस्टीट्यूट ऑफ पेलको बॉटनी लखनऊ और भूगर्भ अध्ययन शाला लखनऊ के संयुक्त शोध से यह बात सामने आई थी कि प्रागैतिहासिक काल में कुटुमसर की गुफाओं में मनुष्य रहा करते थे। गुफा के अंदर कई पूर्ण विकसित कमरे हैं। कैल्शियम युक्त पानी के कटाव के कारन कई चमकीले स्तम्भ व आकृतिया बन गयी हैं।
इन गुफाओं के अंदर उपलब्ध ऑक्सीजन की कमी के कारण एक निश्चित सीमा तक जाने की ही अनुमति है। गुफा के अंदर सतह से लेकर छत तक अद्भुत प्राकृतिक संरचनाएं बन चुकी हैं जो इसे दर्शनीय बनती है। टूरिस्ट स्पॉट बन चुकी इस गुफा को मानसून में बंद कर दिया जाता है और सर्दियों में खोलने की अनुमति दी जाती हैं। यहां देश विदेश से कई टूरिस्ट्स और जियोलॉजिस्ट आते हैं।
कैलाश गुफा
कुटुमसर गुफा के सामान दिखने वाली यह गुफा एक छोटी सी तुलसी डोंगरी पहाड़ी पर स्तिथ है। लगभग 250 मीटर लम्बी व 55 मीटर गहरी कैलाश गुफा का प्रवेश द्वार बोहुत संकीर्ण व अँधेरा से घिरा है। प्रवेश करते वक़्त एक ही व्यक्ति प्रवेश कर सकता है।
एक विशेष स्टैलेग्माइट संरचना है जिसे शिवलिंग के आकार में गुफा के अंत में देखा जा सकता है। अंदर भी कई शिवलिंग बने हुए है जिस वजह से इसे कैलाश गुफा कहा जाता है। गुफा की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि जब आप गुफाओं की खोखली दीवारों पर हाथों से प्रहार करते हैं तो यह संगीतमय ध्वनियाँ उत्पन्न करती है।
इस गुफा की खोज 1993 में किया गई थी। कैलाश गुफा में भी मानसून में प्रवेश वर्जित कर दिया जाता है और हर साल 16 अक्टूबर से 15 जून प्रवेश की अनुमति होती है। यह गुफाएं अद्भुत अनुभव से घिरी प्रत्यत्न स्थल हैं। इन गुफाओं के अलावा बस्तर प्राकृतिक सुंदरता का भंडार है जहा बस्तर महल, बस्तर दशहरा, दलपत सागर, चित्रकोट जलप्रपात, तीरथगढ़ जलप्रपात, पर्यटन के प्रमुख केंद्र हैं।
Back to top button