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Black Day: मोदी सरकार के 7 साल और किसान आंदोलन के 6 माह पुरे, काले झंडों से काला दिवस मना रोष व्यक्त कर रहे किसान

नई दिल्ली| तीन कृषि सुधार कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन को आज छह माह पूरे हो रहे हैं। आज इस दिन को किसान आंदोलनकारी काला दिवस के तौर पर मना रहे हैं। बता दें की छह महीनों के भीतर 447 किसानों की मौत हो चुकी है।

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इस आंदोलन के बीच ही काले झंडे तैयार किए गए हैं वहीँ पुतले भी जलाए जा रहे हैं। आंदोलन में छह माह गुजारने के बाद काला दिवस के तौर पर किसान इसलिए भी जोर लगा रहे हैं क्यूंकि केंद्र में भाजपा की सरकार को भी सात साल पूरे हो गए हैं।

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ज्ञात हो यह आंदोलन 26 नवंबर 2020 से शुरू हुआ था। 27 को बॉर्डरों पर किसानों ने डेरा डाल लिया था। जब आंदोलनकारियों ने पिछले साल बाॅर्डर पर डेरा डाला था तब यह दावा किया था कि वे छह माह का राशन लेकर आए हैं।

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हालांकि उस समय खुद आंदोलनकारियों को भी यह अंदाजा नहीं था कि आंदोलन इतना लंबा चल जाएगा। अब, जबकि यह आंदोलन छह माह पूरे कर चुका है तो अब इसे आगे बढ़ाने के साथ-साथ तेज करना भी आंदोलनकारियों के लिए चुनौतीपूर्ण रहेगा।

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इस आंदोलन से कई तरह के विवाद भी जुड़ चुके हैं। टीकरी बॉर्डर पर तो आंदोलन के बीच कई ऐसी आपराधिक घटनाएं भी हुई, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। यदि 26 जनवरी की लाल किला हिंसा को अलग रख दें तो टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन के बीच ही दो हत्याएं भी हुई।

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अलग-अलग घटनाओं में दो किसानों को मौत के घाट उतारा गया। इसमें उनके अपने नजदीकी ही संलिप्त पाए गए और इस महीने में तो वह मामला सामने आ गया, जो इस आंदोलन पर सबसे बड़े दाग के रूप में उभरा।

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बंगाल की युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना बॉर्डर पर ही होने का आरोप है। खैर इन सभी घटनाओं से खुद को अलग करते हुए आंदोलनकारी अब अगले छह महीने का राशन जुटाने की तैयारी में हैं।

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भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बताया कि हम काले झंडे के साथ ही तिरंगा भी लेकर चल रहे हैं। छह महीने हो गए हैं लेकिन सरकार हमारी बात नहीं सुन रही है। इसलिए किसान काले झंडे रखने को मजबूर हुए हैं। हम सबकुछ शांतिपूर्वक करेंगे। हम कोविड के नियमों का पालन कर रहे हैं। यहां कोई नहीं आ रहा है। लोग जहां हैं वहीं झंगे लगा रहे हैं।

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