क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया कि राजा महाराजाओं के जमाने में बिना साबुन के राजा-रानी इतने खूबसूरत कैसे दिखते थे। वे नहाने में साबुन की जगह किस चीज का इस्तेमाल करते थे और बिना सर्फ के उनके इतने कीमती वस्त्र कैसे धुले जाते थे। चलिए आज हम आपको बताएंगे कि भारत में साबुन कब आया और उससे पहले लोग साबुन की जगह किस चीज का इस्तेमाल करते थे।
राजा रानियों के रेशमी वस्त्रों को साफ करने के लिए रीठा का इस्तेमाल किया जाता था। बता दें रीठा एक वनस्पति पेड़ है। इसका इस्तेमाल राजा महाराजाओं के वस्त्रों को साफ करने के किया जाता था। इसकी उपयोगिता बहुत थी इसलिए राजाओं द्वारा इस पेड़ का बगीचा लगाया जाता था। प्राचीन भारत में रीठे का इस्तेमाल साबुन की तरह होता था। रानिया रीठे का उपयोग बाल धुलने में भी करती थी। इस के छिलकों से झाग पैदा होता था जिससे कपड़ों की सफाई होती थी। इसकी एक और बड़ी विशेषता थी कि इसके द्वारा धुले कपड़े कीटाणु रहित रहते थे।
कैसे धुले जाते थे राजा-रानियों के वस्त्र
राजा रानियों की महंगे कपड़ों को रीठा के झाग से धोते थे। महंगे और मुलायम रेशमी कपड़ों के लिए रीठा का इस्तेमाल होता था। सबसे पहले पानी में रीठा के फल डालकर उसे गर्म किया जाता है। ऐसा करने से पानी में झाग उत्पन्न होता था। इसको कपड़े पर डालकर उसे हाथ से पत्थर या लकड़ी पर रगड़ने से कपड़े साफ हो जाते थे।
बिना साबुन के नहाते कैसे थे
पुराने जमाने में जब साबुन की खोज भी नहीं हुई थी तब लोग नहाने के लिए मिट्टी और राख का इस्तेमाल करते थे। पहले के लोग मिट्टी और राख को बदन पर रगड़ कर अपने शरीर को साफ करते थे। साथ ही मिट्टी और राख का इस्तेमाल बर्तनों को साफ करने के लिए भी किया जाता था।
भारत में कब आया साबुन?
भारत में साबुन की शुरुआत ब्रिटिश शासन काल में हुई थी। नॉर्थ वेस्ट सोप कंपनी ने 1897 में मेरठ में देश का पहला साबुन का कारखाना लगा था। लीबर ब्रदर्स इंग्लैंड ने भारत में पहली बार आधुनिक साबुन बाजार में उतारने का काम किया। उसके बाद जमशेदजी टाटा इस कारोबार में पहली भारतीय कंपनी की स्थापना की।