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सूअर मलद्वार से लेते है Oxygen, तो इंसान क्यों नहीं? कोरोना से लड़ने में साबित हो सकता है रामबाण

कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप से अस्पतालों में संक्रमित मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिससे अस्पतालों में बेड से लेकर ऑक्सीजन की किल्लत है। कोरोना की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन की मांग बढ़ी है। इस बीच वैज्ञानिकों ने नया इलाज खोज निकाला है। इसमें कमजोर फेफड़ों के बजाय गुदा द्वार से सांस लेने की पद्धत्ति बनाई गई है।
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सुअरों (Pigs) पर वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण किया यह स्टडी Cell जर्नल में प्रकाशित हुई है। जिसमें सामने आया है कि सूअर अपने मलद्वार (Anus) से भी Oxygen खींचते हैं यानी वो अपने गुदा द्वार से भी सांस लेते हैं। उनके गुदा द्वार से लगातार ऑक्सीजन से भरपूर तरल पदार्थ (Fluid) निकलता है। सुअरों पर किया गया परीक्षण बिल्कुल सफल रहा है। इसमें फेफड़ों के बजाय Anus से सांस लेने की प्रक्रिया बनाया गया है।
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वैज्ञानिकों का क्या है कहना?
इस बारे में टोक्यो मेडिकल एंड डेंटल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक ताकानोरी ताकेबे बताते हैं कि ऐसे कोरोना संक्रमित लोग जिनके खून में Oxygen लेवल कम है या फिर जिन्हें वेंटिलेटर्स(ventilator) पर रखा गया है, उनके साथ दिक्कत ये है कि उन लोगों के फेफड़ों के नाजुक Tissues पर दबाव के साथ Oxygen जाने पर उन्हें नुकसान पहुंचता है। ऐसे में अच्छा होता अगर इंसान भी अपने गुदा द्वार और आंतों के जरिए सांस ले पाते।
उन्होंने बताया कि हमने सुअरों के गुदा द्वार में एनिमा के माध्यम से परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) डाला, जो एक खास तरह का तरल पदार्थ होता है। यह एक गैर-विषैला तरल पदार्थ है। जो हाई लेवल पर Oxygen को पकड़ कर रखता है। इसे सांस लेने लायक कहा जा सकता है।
कैसे किया परीक्षण?
ताकानोरी और उनकी टीम ने पहले चार सुअरों को बेहोश किया और फिर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा। टीम ने इन सुअरों को सामान्य से कम Oxygen लेवल पर रखा, जिससे उनके खून में Oxygen की कमी हो जाए। इसके बाद टीम ने दो सुअरों को एनिमा के जरिए परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) दिया, जिसके थोड़ी देर बाद ही सुअरों के खून में Oxygen लेवल को बढ़ता हुआ दर्ज किया गया। ताकानोरी ने कहा कि कोरोना संक्रमित लोगों को भी इसी तरह गुदा द्वार के जरिए ऑक्सीजेनेटेड तरल पदार्थ परफ्लोरोकार्बन (Perfluorocarbon) दिया जा सकता है। जिससे उनके शरीर में खून में Oxygen की कमी को पूरा किया जा सकेगा।
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ताकानोरी ने कहा कि इस तरह से लोगों की जान बचाने में मदद मिलेगी और ये तरीका गरीब और कम आय वाले देशों में मददगार साबित हो सकता है। हालांकि उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया के साथ एक समस्या भी आ सकती है कि कोरोना से संक्रमित होने वाले मरीजों को डायरिया हो जाता है। ऐसे में उसके शरीर की आंतें कमजोर हो जाती हैं। इसलिए मलद्वार से परफ्लोरोकार्बन(Perfluorocarbon) देने में परेशानी आ सकती है।
हालांकि ताकानोरी के इस प्रोसेस के बारे में इंपीरियल कॉलेज लंदन के साइंटिस्ट स्टीफन ब्रेट ने कहा कि ताकनोरी और उनकी टीम की स्टडी अभी प्राइम री लेवल पर है और इतनी जल्दी कुछ कहना सही नहीं है। जबकि दूसरी ओर येल स्कूल ऑफ मेडिसिन में कालेब केली ने कातानोरी के आइडिया को आंदोलनकारी बताया है। फीकल ट्रांसप्लांट कराने के लिए लोगों को पहले आंतों में संक्रमण होना जरूरी है।कायदे से ताकानोरी का आइडिया फिलहाल स्वीकृत नहीं किया जा सकता था।

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