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वैज्ञानिकों ने खोज निकाला प्लास्टिक खाने वाला मशरूम, दुनिया को मिलेगी प्लास्टिक के कचरे से निजात?

न्यूयार्क| प्लास्टिक का कचरा इस समय दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है, लेकिन यह समस्या अब बीते दिनों की बात होने वाली है। वैज्ञानिकों ने ऐसा मशरूम खोजा है, जो प्लास्टिक खाकर जैविक पदार्थ बनाता है, यानी भविष्य में प्लास्टिक के कचरे से निजात मिल सकती है। इस मशरूम का नाम है पेस्टालोटियोप्सिस माइक्रोस्पोरा।

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यह मशरूम प्लास्टिक बनाने वाले पदार्थ पॉलीयूरीथेन को खाकर जैविक पदार्थ में बदल देता है, वह भी प्राकृतिक तरीके से। यानी भविष्य में प्लास्टिक के कचरे से मुक्ति पाने के लिए इस मशरूम का उपयोग ज्यादा से ज्यादा किया जा सकता है।

पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर इस मशरूम को प्लास्टिक के कचरे के ऊपर पैदा किए जाए, तो कुछ ही समय में वहां पर ढेर सारा जैविक पदार्थ जमा हो जाएगा, जिसका उपयोग खाद के तौर पर किया जा सकता है, क्योंकि यह मशरूम एक प्राकृतिक कंपोस्ट की तरह काम कर रहा है।

यह हमारी धरती की सफाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मशरूम में एक खास प्रकार का कवक फंगस होता है जो जमीन के अंदर से या पेड़ों की छालों से पनपता है। ये आमतौर पर मृत पौधों और पेड़ों को कंपोस्ट बनाने का का काम करते हैं। मशरूम की खासियत है कि यह कंस्ट्रक्शन मैटेरियल से लेकर बायोफ्यूल तक में उपयोग होता है, इसलिए वर्षों से वैज्ञानिक मशरूम पर रिसर्च कर रहे हैं।

बता दें की धरती पर 20 से 40 लाख के बीच कवकों की प्रजातियां मौजूद हैं, इसलिए भविष्य में इनकी मदद से पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई संभावनाएं हैं। येल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐसा दुर्लभ मशरूम खोजा है, जो प्लास्टिक के ऊपर उग सकता है। वैसे यह मशरूम फिलहाल सिर्फ इक्वाडोर के अमेजन के जंगलों में मिलता है।

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येल यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट के मुताबिक यह भूरे रंग का मशरूम ऐसे वायुमंडल में भी रह सकता है, जहां पर ऑक्सीजन कम हो या न हो, क्योंकि यह प्लास्टिक में मौपॉलीयूरीथेन को खाकर उसे जैविक पदार्थ में बदल देता है, यानी इसे इसकीजरूरत की ऑक्सीजन गैस जैविक पदार्थ के जरिए मिल जाती है।

 

पेस्टालोटियोप्सिस माइक्रोस्पोरा सिर्फ दो हफ्ते में प्लास्टिक को जैविक पदार्थ में बदलने की क्षमता रखता है। यह प्लास्टिक कोब्लैड मोल्ड में बदलने वाले दूसरे मशरूम एस्परजिलस नाइजर की तुलना में काफी तेज है।

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वैसे आपको बता दें कि इससे पहले भी नीदरलैंड्स केके यूट्रेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दो मशरूम से प्लास्टिक को गलाकर इनसानों के खाने लायक खाद्य पदार्थ में बदला था। हालांकि यह सब लैब में किया गया था, जबकि पेस्टालोटियोप्सिस माइक्रोस्पोरा प्राकृतिक रूप से मौजूद है।

गौरतलब है कि 1950 के बाद से अब तक धरती पर इनसानों ने नौ बिलियन टन यानी 816 करोड़ किलोग्राम प्लास्टिक बनाया है, जिसमें से सिर्फ नौ फीसदी ही रिसाइकिल किया गया, 12 फीसदी जलकर राख हो गया, लेकिन बचा हुआ 79 फीसदी प्लास्टिक न तो जला और न ही रिसाइकिल हो सका। यह प्रकृति के लिए खतरा है।

 

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