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पूर्वजों को मोक्ष दिलाने में बेहद महत्वपूर्ण है ये पंच प्राण तिथियां, जानिए पितृ पक्ष के आखिरी पांच दिनों के महत्व

पितृपक्ष के पूरे पखवाड़े में लोग अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं। पिंडदान और श्राद्ध कर्म भी करते हैं लेकिन पितृपक्ष की अंतिम पांच तिथियां बेहद ही महत्वपूर्ण होती हैं। पूर्वजों को पानी देने पिंडदान या पूजन करने के साथ अगर वर्ष भर में कोई गलती हो जाती है तो इन तिथियां में अपने पूर्वजों से क्षमा याचना की जाती है। पितृ पक्ष की आखिरी पांच दिनों को पंच प्राण तिथियां के नाम से भी जाना जाता है. यह एकादशी से शुरू होकर पितृ मोक्ष अमावस्या के बीच होती हैं।

पंच प्राण तिथियाँ अंतिम पाँच (05) दिन
1. एकादशी – यतियों के लिये (भीष्म पितामह)
2. द्वादशी – सन्यासियों के लिये (द्रोणाचार्य / कृपाचार्य)
3. त्रयोदशी – मुनियों के लिये (बामन / नारदमुनि)
4. चतुर्दशी – घात-प्रतिघात ( हत्या / आत्महत्या / दुर्घटना )
5. अमावस्या – जिनकी तिथि का ज्ञान ना हो व जिनकी क्रिया ना हुई हो (सभी भूले बिसरे पितृो को अंतिम तिलांजली)

जानिए पंच प्राण तिथियां का महत्व
पिछले तीन दशकों से तर्पण करने वाली पंडित यशोवर्धन चौबे बताते हैं कि हरिवंश पुराण में इन तिथियां का वर्णन किया गया है जिसके मुताबिक एकादशी पर यतियो के लिए, यति अर्थात जिस तरह से भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था और बाणों की सैया पर लाकर उन्होंने महाभारत का पूरा युद्ध देखा था इस तरह के लोगों का एकादशी पर विशेष ध्यान कर तर्पण कन्यादान श्राद्ध कर्म होता है।

द्वादशी – सन्यासियों के लिये (द्रोणाचार्य / कृपाचार्य) जैसे सन्यासी हो जाने के बाद उनके परिजनों के द्वारा यह कर्म किए जाते हैं।

त्रयोदशी – मुनियों के लिये (बामन / नारदमुनि) यानी कि जिन्होंने शादी नहीं करवाई है और वह भगवान की भक्ति में लीन थे उनकी मृत्यु हो जाने के बाद त्रयोदशी को श्राद्ध करने का विशेष महत्व रहता है।

चतुर्दशी – घात-प्रतिघात ( हत्या / आत्महत्या / दुर्घटना ) जब किसी व्यक्ति की हत्या हो जाती है या वह किसी वजह से आत्महत्या कर लेता है या फिर किसी हद से या दुर्घटना की वजह से उसकी मृत्यु हो जाती है तो चतुर्दशी पर विशेष रूप से उसके नाम का स्मरण कर पिंडदान या श्राद्ध कर्म किया जाता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अंतिम दिन सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के रूप में होती है यानी की किसी की तारीख हम भूल गए हैं या उसकी मृत्यु की तिथि पता नहीं है तो ऐसे लोगों को पितृ मोक्ष अमावस्या में समाहित किया जाता है इसके अलावा जिन्हें हम जानते नहीं हमारे पूर्वज हैं। भूले बिसरे पुरखा है उनको भी इस दिन तर्पण पिंडदान श्राद्ध कर्म किया जाता है। इन तिथियां में कर्म करने से जो हमसे दूर हो गए हैं उनकी आत्मा को शांति मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह हमें सुख समृद्ध रहने का आशीर्वाद भी देते हैं।

ऐसे करें तर्पण पिंडदान और श्राद्ध कर्म
अपने पुरखों का स्मरण करने वाले तर्पण करने के लिए साधक को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए फिर अपने जातक के लिय जलाशयों पर जाकर या घरों के आंगन या छत पर बैठकर हाथ में जल, कुशा, अक्षत, तिल आदि से पितरों के निमित्त तर्पण करना चाहिए। इसके बाद चावल का गोला बनाकर नदी या जलाशय के किनारे पर आचार्य के निर्देशन में पिंडदान की विधि विधान से पूजन कर अपनी माता के लिए याद करें। इसके अलावा घर पर श्राद्ध कर्म करें जिसमें खीर पूरी सब्जी खट्टा मीठा या जो उनके लिए पसंद था वह भी बना सकते हैं फिर 4 भाग उस भोजन से निकाले. जो कौवा, गाय, स्वान( कुत्ता), अभ्यागात या अतिथि के लिय दें।

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